Khatu shyam ji story - खाटू श्याम जी स्टोरी

Khatu shyam ji story या khatu shyam जी की कथा उनके प्रेमियों के लिए अमृतपान के समान ही है। Khatu shyam ji story का संबंध Mahabharat काल से हैं। khatu shyam ji को kaliyug ka raja भी कहा जाता हैं। आपको khatu shyam ji story या उससे जुड़े कोई भी प्रश्न का उत्तर यहाँ मिल जाएगा। 

कौन है khatu shyam? 

Khatu shyam ji story

लाक्षागृह की घटना के बाद पाण्डु पुत्र वन मैं भटक रहे थे, तब वहा एक राक्षस ने उन पर हमला कर दिया, पाण्डु पुत्र bheem ने उस राक्षस का वध कर दिया। उस राक्षस की एक बहन थी जिसका नाम हिडिम्बा था। वह पाण्डु पुत्र भीम पर मोहित हो गयी और उसने पाण्डु पुत्र bheem sai विवाह की इच्छा व्यक्त की। 

माता Kunti ki आज्ञा से bheem सेन ने हाँ कर दिया। उन दोनों के विवाह के पश्चात कुछ समय वह वन में रहे। इन दोनों की एक संतान हुई जिसका नाम Ghatotkacha था। Ghatotkacha का विवाह हुआ मोरवी से। उन दोनों की एक संतान हुई जिसका नाम हुआ बर्बरीक। वहीं बालक आज kathu shyam ji के नाम से जाना जाता है और उसकी ही पूजा आज घर घर मे होती है।

केसे वीर barbarik बने khatu shyam? 

Khatu shyam ji story या khatu shyam ji की कथा  की सही शुरुआत यही से होती हैं। kathu shyam ji बचपन से ही वीर, ज्ञानी एवं साहसी थे। इसलिए उनकी माता ने उन्हें baghwan shiv की भक्ति एवं तपस्या करने को कहा, उन्होंने 14 वर्ष से भी कम आयु मे bhagwan shiv को प्रसन्न कर लिया।

भगवान महादेव ने उन्हें प्रसन्न होकर तीन तीर दिए जो कि अचूक थे। उन तीर मैं इतनी शक्ति थी की वै पूरे विश्व को एक ही बार मैं समाप्त कर सकते थे।

वीर barbarik को जो जब यह पता चला कि Mahabharat का युद्ध निश्चित हो गया है और उनके परिवारजन yudh के लिए तैयार हो रहे हैं, तो उन्होंने अपनी माँ से कहा कि माँ में भी युद्ध मैं जाऊँगा उनकी माँ के मना करने पर भी वे नहीं माने उन्होंने कहा कि 'ऐसा युद्ध ना कभी हुआ है और ना कभी होगा तो तुम ही बताओ मे भला वहां क्यों न जाऊँ, मैं भी जाऊँगा '।

तब उनकी माता ने उनसे कहा कि तुम वहां जा तो रहे हो लेकिन वहां जाने से पहले मुझे दो वचन दो पहला तुमसे रास्ते मैं कोई कुछ भी मांगे तो तुम उसे मना नहीं करोगे और दूसरा तुम सदा हारने वाले का साथ दोगे। बर्बरीक जी ने उन्हें यह दोनों वचन दिए और अपने लीले घोड़े पर बैठकर युद्धभूमि की ओर प्रस्थान कर गए।

ये दो वचन ही khatu shyam ji story के सूत्रधार बने। 

जब अंतर्यामी भगवान shree krishna को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने सोचा ऐसे तो युद्ध का निष्कर्ष ही नहीं निकलेगा कौरव हारते होगे तो barbarik उनकी और से युद्ध करेंगे ऐसी स्थिति मे तो केवल barbarik ही युद्ध मे जीवित रहेंगे बाकी सब समाप्त हो जाएगा।

तो bhagwan shree krishna ने एक ब्राह्मण का वेश बनाया और वीर barbarik को रास्ते में रोका shree krishna ने उनसे पूछा की हे वीर बालक तुम कौन हो और कहां जा रहे हो तब बर्बरीक ने जवाब दिया मेरा नाम barbarik है और मैं पांडू पुत्र bheem के पुत्र Gatotkacha का पुत्र हूं और मैं Mahabharat का युद्ध देख ने जा रहा हूं तब भगवान मुस्कुराए और कहा कि सिर्फ युद्ध देखने जा रहे हो तब उन्होंने जवाब दिया अभी तो देखने जा रहा हूं परंतु सबको युद्ध करते देख मेरी भी युद्ध करने की इच्छा करी तो मैं भी युद्ध करूंगा तब भगवान ने उनसे कहां तुम तो बालक हो और वहा पितामह bhisma, surya putra Karn, Arjun आदि है जो अत्यंत वीर है और तुम्हारे तरकश मे 3 ही तीर है इनसे युद्ध करोगे।

तब barbarik ने जवाब दिया ये तीन तीर ही पर्याप्त है मैं अगर चाहूँ तो इन तीनों के सहायता से एक पल मैं युद्ध समाप्त कर सकता हूं भगवान ने कहा मुझे विश्वास नहीं है अगर तुम इतने वीर हो तो सामने यह जो पीपल का वृक्ष की सारी पत्ती मैं अपने एक तीर से छेद करके बताओ।

Barbarik ने कहा क्यों नहीं और अपने ek ही तीर से सारे पतों मे छेद कर दिया। भगवान shree krishna ने उस दौरान एक पत्ती अपने पैर के नीचे छुपा ली तो तीर उनके पैर पर आ कर चक्कर काटने लगा। 

तब barbarik ने कहा कि ब्राह्मण देवता आप अपना पैर हटा ले नहीं तो तीर आपके पैर को हानि पहुचा देगा तब भगवान ने barbarik से कहा तुम वीर हो लेकिन तुम मुझे दानी नहीं नजर आते अगर मैं तुमसे कुछ मांगू तुम मुझे दोगे? 

तब वीर barbarik ने कहां आप मांग कर तो देखिए तब भगवान ने कहा कि इस युद्ध के लिए एक शीश की बली की आवश्यकता है यहां तो वह शीश shree krishna का हो पर वह शीश का दान नहीं दे सकते क्योंकि उन्हें यह युद्ध पांडव को जिताना है या फिर arjun किंतु उन्हें यह युद्ध लड़ना है अथवा तुम तो क्या तुम अपने शीश का दान दोगे 

तब barbarik ने कहा आप ब्राह्मण तो नहीं हो सकते तो आप हैं कौन मैंने वचन दे दिया है तो मैं दान तो जरूर दूंगा किंतु उसके पहले आप अपनी वास्तविकता बताएं, तब भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और सारी बात बताई। 

तब barbarik ने ग्यारस के दिन अपने शीश का दान दिया। शीश का दान देने से पहले उन्होंने भगवान से कहा कि मेरी यह युद्ध देखने की की बहुत इच्छा है तब भगवान ने उन्हें कहा कि तुम युद्ध अवश्य देखोगे और उनके शीश को एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया। 

Barbarik ने पूरा युद्ध देखा युद्ध के पश्चात जब पांडव मैं आपस में यह वार्ता हो रही थी की किसकी वजह से यह युद्ध वे जीते तब भगवान shree krishna ने कहा इसका निर्णय तो केवल barbarik कर सकते हैं सब मिलकर barbaik के पास पहुंचे और पूरा हाल बताया न्याय करने को कहां। 

तब barbarik ने जवाब दिया यह युद्ध तो केवल shree krishna की वजह से जीते हैं जब भी पांडवों की ओर से कोई प्रहार कर रहा था तो उसमें shree krishna का सुदर्शन चक्र था। मुझे तो केवल सुदर्शन चक्र ही दिखा। 

तब भगवान उनसे बहुत खुश हुए और उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में मेरी सारी 16 कलाएं तुमने समाहित हो जाएगी और तुम कलयुग में पूजे जाओगे। 

भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना नाम shyam दिया और कहां की तुम कलयुग मैं shyam नाम से पूजे जाओगे जो भी तुम्हारे द्वार पर एक बार हार कर आ जाएगा, वह दोबारा कभी नहीं हारेगा। 

कलयुग में तुम हारे के सहारे के नाम से जाने जाओगे। khatu में शीश प्रकट होने के कारण वे khatu shyam ji के नाम से जाने जाने लगे।

और आज हो भी ऐसा ही रहा है जो baba shyam के दरबार मैं आ गया वो यहां से खाली नहीं जाता है। 

आशा है आपको हमारी पोस्ट पढ़कर khatu shyam ji story या khatu shyam जी की कथा का ज्ञान हो गया होगा। आपका अगर कोई प्रश्न हो तो नीचे comment मे बताएं। 

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