Haldighati ka yudh भारत में हुए सबसे महान युद्धों में से एक है। Haldighati ka yudh असंख्य वीर योद्धाओं के बलिदान का प्रतीक है। इस युद्ध में Maharana pratap एवं उनके मेवाड़ी वीरो का मुकाबला Raja Man sing के नेतृत्व वाली मुगल सेना से था।
Haldighati yudh से जुड़ी 5 रोचक बाते -
1. Haldighati में नही हुआ था Haldighati ka yudh -
Haldighati ka yudh, haldighati में नहीं हुआ था। यह युद्ध haldighati के दर्रे से शुरू अवश्य हुआ था, लेकिन जो भीषण रक्तपात हुआ वह खमनौर में हुआ था।
Akbar के नौ रत्नों में से एक abul fazal नें haldighati के युद्ध को ' अकबरनामा ' में ' खमनौर का युद्ध ' का कहा है।
एक मेवाड़ी कवि रामा सांदु ने अपनी रचना 'झूलणा महाराणा प्रताप सिंह जी रा ' मैं लिखा है कि "Maharana pratap अपने घुड़सवार दल के साथ haldighati पहुंचे पर जो भीषण रक्तपात हुआ वह haldighati में नहीं खमनौर में हुआ" ।
2. Maharana pratap के अफ़गान मित्र Hakim khan sur का बलिदान -
Maharana pratap के अफ़गान मित्र, Hakim khan sur जो कि shershah sur के वंशज थे।
इन्होंने Maharana pratap को अंतिम श्वास तक साथ निभाने का वचन दिया था। इन्हें Maharana pratap ने अपना सेनापति भी बनाया था। इन्होंने युद्ध से पहले कहा था कि 'कसम खुदा की आज न ही मेरे हाथ से घोड़े की लगाम छूटेगी न ही मेरे हाथ से तलवार'।
और हुआ भी ऐसा ही जब इनकी मृत्यु के बाद इन्हें दफनाने के लिये इनके हाथ से तलवार व लगाम छुड़ाने का प्रयास किया तो इनके हाथ से न ही तलवार छूटी न ही लगाम। इन्हें इनकी तलवार के साथ ही दफनाया गया।
हल्दीघाटी का वीर पठान
न हाथ से तलवार छूटी न लगाम
3. केवल 4 घंटे ही चला था Haldighati ka yudh -
जब maharana pratap व मुगल सेना खमनौर में एक दूसरे के सामने एकत्र हुई तो कुछ समय तक एक दूसरे ने प्रतीक्षा करी की पहले आक्रमण कोन करे और फिर दोनों सेना एक दूसरे से भीड़ गई। Haldighati ka yudh अब मेवाड़ के योद्धाओं के लिये केवल एक युद्ध ना होकर स्वाभिमान का प्रश्न बन गया था।
दोनों और से भयंकर रक्तपात लगभग 4 घंटे तक चलता रहा। इस yudh में सेंकड़ों सेनिक ने अपने प्राणों की आहुति दी।
मुगलों की विशाल काय फौज का सामना मेवाड़ी योद्धाओं ने वीरता से किया।
4. जब Jhala Man singh ने Maharana pratap के स्थान पर अपना बलिदान दिया -
युद्ध के अंतिम समय में जब परिस्थिति विपरित हुई और स्वतंत्रता एवं स्वाधीनता की मशाल को जीवित रखने के लिए Maharana pratap को युद्धभूमि से प्रस्थान करना पड़ा तब Maharana pratap का स्थान Jhala Man singh ने लिया था। jhala Man singh ने Maharana का मुकुट पहना और युद्ध करने लगे।
Jhala Man singh, Maharana pratap जैसे दीखते थे। उनके परिवार की 7 पीढ़ी ने मेवाड़ के राजपरिवार के लिये अपने प्राणों की आहुति दी थी।
मुगल सेना ने जब Jhala Man singh को Maharana pratap का मुकुट पहन युद्ध करते देखा तो उन्हें लगा कि वे Maharana pratap है। मुगल सेना ने पूरी शक्ति से उन पर प्रहार किया, वे वीरता से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
5. Maharana pratap के पास मुगल सेना से बहुत कम सेना थी -
Maharana pratap और मुगल सेना की संख्या की तुलना की जाये तो मुगल सेना की कुल संख्या 20,000 थी और उनके विरुद्ध Maharana pratap की सेना की संख्या केवल 5,000 थी। Maharana pratap की सेना की संख्या लगभग मुगल सेना की संख्या एक चौथाई थी।
मेवाड़ के सैनिकों के पास बंदूके नहीं थी। दूसरी और मुगल सैनिकों के पास सैकड़ों बंदूके थी।
Maharana pratap के पास Chetak समेत लगभग 3,000 घोड़े थे। जबकि मुगल सेना के पास लगभग 10,000 घोड़े थे।
Maharana pratap की सेना में ऊँट नहीं थे, जबकि मुगल सेना ने ऊँटों का भी प्रयोग किया।
Maharana pratap के पास कुल 100 हाथी थे। जिनमें प्रमुख हैं उनका प्रिय हाथी रामप्रसाद, लूना, चक्रबाप, खांडेराव। मुगलों के पास लगभग इनसे तीन गुना हाथी थे। मुगल हाथियों की सूंड पर धारदार खांडे बंधे होते थे।
आशा है आपको 'Haldighati ka yudh एवं जुड़ी 5 रोचक बाते' का वर्णन अच्छा लगा हुआ और यह आपके haldighati yudh संबंधित ज्ञान में वृद्धि करेगा। इसके संबंध में यदि आपका कोई प्रश्न हो comment me बताये।