Haldighati ka yudh एवं Maharana pratap का युद्धभूमि छोडकर जाने का वर्णन

Haldighati ka yudh मुगलों एवं Maharana pratap के बीच निर्णायक युद्ध नहीं था। यह तो मुगलों एवं मेवाड़ के बीच वर्षो चल रहे है संघर्ष का एक हिस्सा थी। आप को पता ही होगा haldighati ka yudh मेवाड़ एवं मुगलों के बीच हुआ था। मुगलों के सेनापति Raja Man singh थे। वहीं मेवाड़ के सेनापति Hakim khan sur थे। 

Haldighati ka yudh

इस युद्ध में एक समय ऐसी परिस्थिति निर्मित हुई की Maharana pratap को युद्धभूमि छोडकर जाना पड़ा वो परिस्थिति क्यों निर्मित हुई एवं Maharana pratap का Haldighati ka yudh छोडकर जाना क्यों आवश्यक था इसके बारे संक्षिप्त वर्णन आप को हमारे article में उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।

Haldighati युद्धभूमि से Maharana pratap के प्रस्थान का कारण - 

Haldighati ka yudh निरन्तर लगातार चार घंटे से चल रहा था। Maharana pratap एवं उनके वीर योद्धा निरन्तर युद्ध कर रहे थे। परन्तु Maharana pratap की सेना संख्या में मुगल सेना से बहुत कम थी। Maharana pratap के कई प्रमुख साथी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे, स्वयं Maharana pratap को शरीर पर कई घाव लगे थे। 
तब Maharana pratap के प्रमुख सहयोगियों ने Maharana pratap को कहा की आप युद्धभूमि छोडकर चले जाये। Maharana pratap ने इसका विरोध करा। विरोध करना स्वाभाविक भी था, क्योंकि Maharana pratap एक सच्चे Rajput एवं एक वीर योद्धा थे। Maharana pratap तो खुशी से अपना जीवन मातृभूमि को समर्पित करना चाहते थे।

तब उनके सहयोगियों ने कहा "राणा जी haldighati ka yudh तो स्वाधीनता के संग्राम का एक छोटा सा भाग है अगर आपने आज युद्ध में अपना सर्वस्व बलिदान दे दिया तो मेवाड़ पुनः कभी स्वतन्त्र नहीं हो पाएगा। परन्तु अगर आप जीवित रहे तो मेवाड़ की स्वतंत्रता की आस जिवित रहेगी आपको मेवाड़ की खातिर युद्धभूमि छोडकर जाना ही होगा"। 

बड़ी मुश्किल से से Maharana pratap माने, अब प्रश्न था Maharana pratap को सुरक्षित युद्धभूमि से निकाल जाये। 

Jhala Man singh का बलिदान - 

Jhala Man singh, Maharana pratap के प्रमुख सहयोगी थे। Jhala Man singh की सात पीढ़ी ने मेवाड़ राजपरिवार के लिये अपने जीवन का बलिदान दिया था।  

Jhala Man singh, Maharana pratap जेसे दिखते थे। जब Maharana pratap ने युद्ध भूमि से प्रस्थान करा तब Jhala Man singh ने Maharana pratap का मुकुट पहन लिया एवं युद्ध करने लगे। उन्हें देख ऐसा लग रहा था मानो स्वयं Maharana pratap युद्ध कर रहे हो। 

मुगल सेना को लगा कि Jhala Man singh ही Maharana pratap है और मुगल सेना ने उन पर पूरी शक्ति से प्रहार करना शुरू कर दिया। इस दौरान Maharana pratap युद्ध भूमि से प्रस्थान कर गये। 

Jhala Man singh ने अपने प्राणों का बलिदान देकर Maharana pratap की रक्षा की।

Maharana pratap के प्रिय घोड़े चेतक का बलिदान-

Maharana pratap के घोड़े चेतक के पैर में युद्ध के दौरान घाव लग गया था। किन्तु फिर भी चेतक तेज गति से Maharana pratap को युद्धभूमि से बाहर ले गया। 

Haldighati ka yudh



Maharana pratap को लेकर चेतक तेज गति से आगे बढ़ रहा था तभी एक नाला लगभग 26 फीट का बीच में आ गया तभी चेतक ने बिना एक पल की देरी किये उस नाले को पार कर गया। 

चेतक ने अपने स्वामी की रक्षा तो कि किन्तु स्वयं घायल होने के कारण वीरगति को प्राप्त हो गया। 

Shakti singh जी एवं Maharana pratap का मिलन - 

जब Maharana pratap अपने अश्व चेतक की मृत्यु का शौक मना रहे थे, तब 2 मुगल जिन्होंने Maharana pratap को युद्धभूमि  छोडकर जाते हुए देख लिया जिनमे से एक का नाम मुल्तान खान था और एक उसका साथी दोनों ने पीछे से Maharana pratap पर आक्रमण कर दिया। तब Shakti singh जी ने उन दोनों को मार गिराया, दोनों भाईयों के बीच जो मतभेद था वह दूर हो गया। Shakti singh जी ने Maharana pratap को अपना घोड़ा दिया और कहा दादाभाई आप प्रस्थान करे उसके पहले की कोई और मुगल यहा आये। 

निष्कर्ष -

Maharana pratap का Haldighati ka yudh छोड़ कर जाना अत्यंत आवश्यक था क्योंकि अगर Maharana pratap को कुछ हो जाता तो मेवाड़ को मुगलों से स्वतंत्र होना असंभव हो जाता। Maharana pratap पर उस समय पूरे मेवाड़ की रक्षा का भार था इसलिए उन्होंने जो निर्णय लिया वो उचित था। 

आशा है आपको Maharana pratap का Haldighati ka yudh एवं युद्धभूमि छोड़कर जाने के कारण एवं उनके निर्णय के संबंधित सारे प्रश्नों के उत्तर आपको मिल गये होगे। इसके संबंध में यदि आपका कोई प्रश्न हो तो मुझे comment me बताये।
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