Maharana Raj Singh एक प्रजा पालक, वीर एवं धर्म को महत्व देने वाले Maharana थे। इन्होंने औरंगजेब की हिन्दू विरोधी गतिविधियों का विरोध किया था। औरंगजेब ने जब हिन्दू मंदिर तोड़ने का आदेश दिया तब गोसाई लोग नें Maharana Raj Singh से सहायता मांगी जिसका विस्तृत वर्णन इस article में किया गया है।
1669 ई. में औरंगजेब ने जब हिन्दू मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया तब मुगल सेना ने हिन्दू धर्म के मंदिरों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया जिसके चलते हजारो मंदिर तोड़ दिये गये उन मंदिरों के स्थान पर मस्जिद बनाई गईं।
जिसके चलते हिन्दू धर्म के लोगों की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचा।
Maharana Raj Singh औरंगजेब की इस नीति के विरोध में थे। जिस कारण कई मंदिरों के पुजारी ने Maharana Raj Singh से सहायता मांगी।
द्वारिकाधीश जी की मूर्ति मेवाड़ का मेवाड़ आगमन -
औरंगजेब ने वल्लभ संप्रदाय की Bhagwan Govardhan (गोवर्धन) की सभी प्रमुख मूर्तियाँ को नष्ट करने का निर्णय अपनी मुगल सेना को दिया।
तब द्वारकाधीश जी की मूर्ति Mewar में लायी गयी।
Maharana Raj Singh के आदेश से इस मूर्ति की प्रतिष्ठा कांकरोली के मंदिर में करवाई गई जो वर्तमान समय में द्वारिकाधीश जी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
श्रीनाथ जी की मूर्ति का मेवाड़ में आगमन -
गिरिराज पर्वत जो कि mathura के पास स्थित है उस पर एक श्री नाथ जी का mandir था। जहाँ की व्यवस्था गोसाई समुदाय के लोग संभालते थे। औरंगजेब ने अपना एक आदमी गोसाई लोगों के पास पहुचा कर कहलवाया की तुम यहा से निकल जाओ नहीं तो मुगल सेना द्वारा तुम यहा से
निकाल दिये जाओगे।
इस बात से गोसाई विट्ठलदास जी के पुत्र गिरीधारी जी के पुत्र दामोदर जी घबराए और 10 अक्टूबर 1669 ई. श्रीनाथ जी की मूर्ति को एक रथ में बिठाकर अपने काका गोविंद जी बालकृष्ण जी वल्लभ जी के साथ आगरा पहुचें।
26 अक्टूबर 1669 ई. 16 दिन आगरा में छिपे रहने के बाद ये लोग विभिन्न स्थानो पर गये पर किसी भी राजा ने इनको औरंगजेब के भय से शरण नहीं दे सकें। फिर ये लोग किशनगढ़ के Raja Man sing के पास पहुंचे तो मानसिंह ने कहा कि हम भी आपको ज़ाहिरा तोर पर तो शरण नहीं दे सकते है। अगर आप छिपकर रहना पसंद करे तो आप रुक सकते हैं। इन लोगों नें गर्मियों के दिन किशनगढ़ में ही गुजारे।
इसके के बाद इन्होंने वहा से प्रस्थान करा परन्तु 2 वर्षो तक भटकने पर भी औरंगजेब के भय के कारण इनकी किसी ने ज़ाहिरा तौर पर सहायता नहीं की।
तब दामोदर दास जी के काका गोविंद सिंह जी नें मेवाड़ पहुँचकर Maharana Raj Singh जी को कहा कि आप के वंश ने सदा सनातन संस्कृति की रक्षा की है। आप लोगों को एकलिंग का दीवान कहा जाता है। और उनसे सहायता मांगी।
तब Maharana Raj Singh जी ने उत्तर दिया में यह वचन तो मैं नहीं दे सकता कि औरंगजेब श्रीनाथ जी को स्पर्श भी नहीं कर पाएगा पर मैं यह आपको अवश्य कह सकता हूँ कि एकलिंग नाथ जी की सौगन्ध औरंगजेब के अधर्मी हाथ श्रीनाथ जी को छुए उसके पहले एक लाख
मेवाड़ियों के सिर कटेंगे तभी औरंगजेब श्रीनाथ जी भगवान की इस मूर्ति को हाथ लगा सकेगा।
17 नवम्बर 1671 ई. को गोविंद जी खुश होकर चाम्पासेणी गए और वहां से सभी गोसाई समुदाय के लोगों के साथ shree nath ji की मूर्ति को लेकर Mewar के लिए रवाना हुए।
20 फरवरी, 1672 ई. को udaipur से 12 कोस उत्तर की तरफ बनास नदी के तीर सिंहाड़ गांव जो वर्तमान में नाथद्वारा के नाम से जाना जाता है मे मंदिर बनवाकर श्रीनाथ जी की मूर्ति की स्थापना की गई। ऐसा भी कहा जाता है कि जब यह मूर्ति सिंहाड़ गांव के मे पहुची तो जिस रथ मे श्रीनाथ जी विराजमान थे वह मिटी में अटक गया लाख कोशिश करने के बाद भी रथ निकला नहीं। जिस कारणवश श्रीनाथ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा उसी गांव में कर दी गई।
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