Haldighati ka yudh भारत में लड़े गये सब से महान युद्धों में से एक है। आज हम आपको जिस yudh के बारे में बताने जा रहे उसको कई इतिहासकार Haldighati ka yudh भाग 2 भी कहते हैं इस युद्ध का नाम है दिवेर का युद्ध।दिवेर का युद्ध इसके संबधित सारे प्रश्नों के उत्तर आज हम आपको हमारे article में देने का प्रयास करेंगे।
Haldighati ka yudh, Maharana pratap एवं Akbar के बीच निर्णायक युद्ध नहीं था। Haldighati ka yudh तो मुगल सेना एवं Maharana pratap के बीच संघर्ष की शुरुआत थी। और इस संघर्ष को शक्ति प्रदान करने वाले युद्ध बना "दिवेर का युद्ध"।
Haldighati yudh के बाद की स्थिति -
Haldighati yudh के बाद मुगल सेना का उदयपुर , गोगुंदा , कुंभलगढ़ और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो चुका था। पर मुगल सेना Maharana pratap को ना तो पकड़ सकी और ना ही संपूर्ण मेवाड़ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर सकी।
Haldighati ka yudh 1576 मैं हुआ , 1577 से 1582 तक अकबर ने Maharana pratap को पकड़ने के लिए लगभग 1 लाख का सैन्य बल भेजा पर Maharana pratap को पकड़ने में असफल रहा।
अंग्रेजी इतिहासकारों के अनुसार Haldighati yudh का दूसरा भाग जिसे battle of dever ( दिवेर का युद्ध ) भी कहा जाता है। दिवेर का युद्ध मुगल सेना व मुगल बादशाह अकबर के लिए करारी हार सिद्ध हुआ।
Maharana pratap द्वारा दिवेर युद्ध की योजना अरावली के जंगलों में बनाई थी। उन्होंने भामाशाह के द्वारा दी गई संपत्ति एवं भीलो की सहायता से नई सेना का निर्माण किया एवं छापे मार युद्ध पद्धति से लगातार मुगलों पर हमले किए एवं रसद और हथियार की लूट से मुगल सेना की हालात खराब कर दी।
Haldighati yudh के लगभग 6 साल बाद 1582 दिवेर का युद्ध हुआ। विजयादशमी का दिवस था Maharana pratap ने अपनी sena को दो भागों में विभाजित कर दिया एक का नेतृत्व वे स्वयं कर रहे थे दूसरे भाग का नेतृत्व उनके जेष्ठ पुत्र राजकुमार Amar singh ji ( जो आगे चलकर मेवाड़ के Maharana बने ) कर रहे थे। अकबर की ओर से मुगल सेना का नेतृत्व अकबर का चाचा सुल्तान खा कर रहा था।
राजकुमार Amar singh जी के नेतृत्व में Rajput सेना ने दिवेर के शाही थाने पर हमला किया यह हमला इतना भयंकर था कि मुगल सेना में हड़कंप मच गई राजकुमार Amar singh जी ने अद्भुत शौर्य दिखाते हुए मुगल सेनापति पर भाले का ऐसा प्रहार किया की भाला senapati और उसके घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धसा।
अपने सेनापति की ऐसी दुर्दशा देखते हुए मुगल सेना में भगदड़ मच गई Rajput सेना ने मुगल सेना को अजमेर तक खदेड़ा।
युद्ध के पश्चात 36,000 मुगलों ने Maharana pratap एवं राजपूती सेना के आगे आत्मसमर्पण किया। इस विजय के पश्चात Maharana pratap ने कई महत्वपूर्ण दुर्ग एवं ठिकानों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया जिनमें प्रमुख हैं कुंभलगढ़ , गोगुंदा , जावर , मदारिया आदि हैं।
इसके पश्चात भी Maharana pratap ने मुगलों पर आक्रमण जारी रखें एवं चित्तौड़गढ़ को छोड़कर लगभग समूचे मेवाड़ के क्षेत्र पर जिन पर मुगलों ने अपना अधिकार स्थापित करा था उन्हें मुगलों से वापस छीन कर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
यहां तक की मेवाड़ से गुजरने वाले मुगल काफीलो को Maharana pratap को रकम देनी पड़ती थी।
आशा है आपको Haldighati ka yudh भाग 2 जिसे दिवेर का युद्ध कहा जाता है, इसके संबधित सारे प्रश्नों के उत्तर आपको मिल गये होंगे। इसके संबंध में आपका कोई प्रश्न हो नीचे comment में बताये।