Haldighati ka yudh भारतीय इतिहास के सबसे प्रमुख युद्धों में से एक है। Haldighati ka yudh तो अनिर्णायक रहा किन्तु यहा अनेक वीर योद्धा नें अपना शौर्य दिखाया और अपनी मातृभूमि के लिये अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।
मेवाड़ की और से युद्ध करने वाले ऐसे ही कुछ प्रमुख योद्धा का वर्णन हमने हमारे इस article में किया है। जिन्होंने अपना जीवन मेवाड़ को समर्पित कर दिया।
Haldighati yudh में मेवाड़ के प्रमुख योद्धा -
Raja Ram shah tomar एवं उनके पुत्र -
Raja Ram shah tomar ग्वालियर के राजा थे। जब मुगलों नें ग्वालियर पर हमला कर ग्वालियर जीत लिया तब मेवाड़ नें ही Raja Ram shah tomar और उनके पुत्रों को राजकीय शरण दी थी। Raja Ram shah जी पुत्र कुँवर शालिवाहन तोमर का विवाह Maharana pratap नें अपनी बहन से करवाया था।
Raja Ram shah जी पुत्र कुँवर शालिवाहन तोमर, कुँवर भवानी तोमर, कुँवर प्रताप तोमर सहित अनेक तोमर वीरो नें अपने जीवन को मेवाड़ के लिये समर्पित कर दिया एवं अपना बलिदान दिया।
Jhala man singh ( झाला मान सिंह ) -
Jhala Man singh बड़ी सादड़ी (झाला) ठीकाने से आते थे। जब Haldighati yudh में Maharana pratap के प्राणों पे संकट आया और मेवाड़ के हित में Maharana pratap को Haldighati ka yudh छोडकर जाना पड़ता है तब Jhala Man singh ने ही Maharana pratap का स्थान लिया। Jhala Man singh Maharana pratap जैसे दिखते थे।
जिस कारण Maharana pratap युद्धभूमि छोडकर जाने में सफल हो पाये। Jhala Man singh नें अपने प्राणों की आहुति देकर Maharana pratap की रक्षा की।
Rawat krishna das chundavat (रावत कृष्ण दास चुंडावत) -
रावत कृष्ण दास चुंडावत ने ही जगमाल को हाथ पकड़ कर सिंहासन से नीचे उतारा था। यह सलूंबर के रावत थे।
मेवाड़ की हरावल मैं रहकर रावत कृष्णदास चुंडावत जी ने मुगल सेना को बहुत दूर तक खदेड़ा। रावत कृष्णदास चुंडावत ने अपने पराक्रम से ऐसे ही कीर्ति प्राप्त की जैसे कि उनके पूर्वजों ने प्राप्त की थी।
रणभूमि मैं इन्हें कोई भी मुगल मार नहीं पाया। ऐसा कहा जाता है की इन्होंने Maharana pratap के साथ ही युद्धभूमि से प्रस्थान करा था।
Panrava के Rana Punja (पानरवा के राणा पुंजा) -
राणा पुंजा जी भीलो के सरदार थे। कुछ इतिहासकार इन्हें हल्दीघाटी में वीरगति पाने वाले योद्धाओं में से समझते हैं। इन्होंने Haldighati ka yudh लड़ा परंतु यह haldighati के yudh में वीरगति को प्राप्त नहीं हुए।
इनकी मृत्यु तो Haldighati yudh के लगभग 34 वर्ष पश्चात हुई।
Hakim khan sur -
Hakim khan sur ने मेवाड़ की हरावल का नेतृत्व किया था। Hakim khan sur शेरशाह सूरी के वंशज थे।
Hakim khan sur ने युद्ध से पहले कहा था कि आज इस पठान के हाथ से लगाम और तलवार दोनों नहीं छूटेगी।Haldighati ka yudh समाप्त हुआ एवं Hakim khan sur नें अपने प्राणों का बलिदान मेवाड़ के लिये दिया, किन्तु जब युद्ध के बाद उनके हाथ से तलवार व लगाम छुड़ाने का प्रयास किया गया तो भी उनके हाथ से उनकी तलवार व लगाम नहीं छूटी।
Hakim khan sur को उनकी talwar के साथ दफनाया गया।
ठाकुर भीम सिंह डोडिया ( Thakur bhim singh dodiya)-
ठाकुर भीम सिंह डोडिया लावा सरदारगढ़ के ठाकुर थे। ठाकुर भीम सिंह जी ने अद्भुत पराक्रम एवं वीरता का परिचय हल्दीघाटी युद्ध में दिया।
ठाकुर भीम सिंह डोडिया ने कई मुगलों को मौत के घाट उतारा वे स्वयं मुगलों को मारते मारते अकबर के सेनापति Raja Man singh के हाथी के पास पहुंच गए उन्होंने भाले से Raja Man singh के हाथी पर प्रहार किया परंतु जवाबी कार्यवाही में वीरगति को प्राप्त हुए। इन्होंने अपने अद्भुत पराक्रम से अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षर से अंकित कराया।
ठाकुर भीम सिंह डोडिया के साथ-साथ उनके दोनों पुत्रों एवं उनके दोनों भाइयों ने भी मेवाड़ के रक्षा, स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
Man singh songara ( मान सिंह सोनगरा) -
यह पाली से संबंध रखते थे। यह पाली के सोनगरा अखराज के पुत्र थे। यह Maharana pratap के मामा थे।
मान सिंह जी नें Maharana pratap को सिंहासन दिलवाने ने अहम भूमिका निभाई थी। इनके वीरगति को प्राप्त होने के बाद इनके छोटे भाई Maharana pratap जी की सेवा में उपस्थित हुए।
आशा है आप के लिए Haldighati ka yudh एवं इसमे भाग लेने वाले मेवाड़ के वीर योद्धाओं का वर्णन ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायी रहा होगा। इसके संबंध में आपका कोई प्रश्न हो तो comment में बताये।