द्वारिकाधीश जी की मूर्ति मेवाड़ का मेवाड़ आगमन -
औरंगजेब ने वल्लभ संप्रदाय की Bhagwan Govardhan (गोवर्धन) की सभी प्रमुख मूर्तियाँ को नष्ट करने का निर्णय अपनी मुगल सेना को दिया।
औरंगजेब ने वल्लभ संप्रदाय की Bhagwan Govardhan (गोवर्धन) की सभी प्रमुख मूर्तियाँ को नष्ट करने का निर्णय अपनी मुगल सेना को दिया।
Maharana Raj Singh मेवाड़ के परम प्रतापी शासक थे। Maharana Raj Singh एक वीर, प्रजापालक, एवं दानी शासक थे। इन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के हिन्दू धर्म विरोधी गतिविधियों का खुल कर विरोध किया था। Maharana Raj Singh के जन्म एवं परिवार सम्बंधित जानकारी आज हम आपको इस article में उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।
Maharana Raj Singh का जन्म 24 सितंबर 1629 को हुआ था। Maharana Raj Singh जी अपने पूर्वज Maharana pratap के भाँती ही वीर एवं देशभक्त थे।
Maharana Raj Singh का राज्याभिषेक जब हुआ तब उनकी आयु मात्र 23 वर्ष थी। उनका राज्याभिषेक 1652 में उनके पिता के देहांत के बाद हुआ था। Maharana Raj Singh की का राज्याभिषेक महाराणा उदयसिंह द्वारा निर्मित नौचौकी महल में हुआ था। ऊंदरी गांव के भील मुखिया ने अपना अंगूठा चीरकर Maharana raj singh का राजतिलक किया था।
4 फरवरी 1653 ई. Maharana Raj Singh के राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया था। इस अवसर पर राणा जी ने चाँदी का तुलादान किया था। इसी वर्ष Maharana Raj Singh ने अपनी बहन का विवाह बीकानेर के राजा कर्णसिंह राठौड़ के पुत्र से करवा दिया था।
1653 ई. मार्च में Maharana Raj Singh ने अपने Maharana बनने की ख़बर कल्याण झाला के द्वारा शाहजहां तक पहुंचाई mugal badshah शाहजहाँ ने Maharana Raj Singh के लिए 5000 जात व 5000 सवार के मनसब का संदेश व टीका दस्तूर के सामान सहित कल्याण झाला व नरदमन गौड़ को Maharana Raj Singh के पास भेजा।
Maharana Raj Singh के पिता का नाम Maharana Jagat singh जी एवं उनकी माता का नाम महारानी मेडतणीजी थी।
(1) महारानी हाड़ी कुंवराबाई
(2) रानी भटियाणी कृष्णकंवर
(3) रानी राठौड़ आनंद कंवर
(4) रानी झाली केसर कंवर
(5) रानी पंवार सदा कंवर
(6) रानी झाली रूप कंवर
(7) रानी वीरपुरी दुर्गावती
(8 ) रानी चौहान जगीस कंवर
(9) रानी पंवार बदन कंवर
(10) रानी चौहान रतन कंवर
(11) रानी झाली पैप कंवर
(12) रानी झाली रतन कंवर
(13) रानी पंवार आस कंवर
(14) रानी खीचण सूरज कंवर
(15) रानी राठौड़ हर कंवर
(16) रानी राठौड़ चारूमति बाई (औरंगजेब जिनसे विवाह करना चाहता था पर Maharana Raj Singh जी ने इनसे विवाह कर इनकी रक्षा की )
(17) रानी पंवार रामरसदे कंवर
(18) रानी भटियाणी चंद्रमति बाई
(1) महाराणा जयसिंह ( यह आगे चलकर मेवाड़ के Maharana बने )
(2) कुँवर भीमसिंह
(3) कुँवर इंद्रसिंह
(4) कुँवर गज सिंह जी
(5) कुँवर सुल्तानसिंह
(6) कुँवर सरदार सिंह
(7) कुँवर बहादुरसिंह
(8 ) कुँवर सूरतसिंह
(9) कुँवर तख्तसिंह
अजब कंवर बाई
आशा है आपको Maharana Raj Singh जन्म एवं परिवार परिचय का वर्णन पसंद आया होगा। इसके संबंधित यदि आपका कोई प्रश्न हो तो नीचे comment में अवश्य बताये।
Haldighati ka yudh भारतीय इतिहास के सबसे प्रमुख युद्धों में से एक है। Haldighati ka yudh तो अनिर्णायक रहा किन्तु यहा अनेक वीर योद्धा नें अपना शौर्य दिखाया और अपनी मातृभूमि के लिये अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।
मेवाड़ की और से युद्ध करने वाले ऐसे ही कुछ प्रमुख योद्धा का वर्णन हमने हमारे इस article में किया है। जिन्होंने अपना जीवन मेवाड़ को समर्पित कर दिया।
Raja Ram shah tomar ग्वालियर के राजा थे। जब मुगलों नें ग्वालियर पर हमला कर ग्वालियर जीत लिया तब मेवाड़ नें ही Raja Ram shah tomar और उनके पुत्रों को राजकीय शरण दी थी। Raja Ram shah जी पुत्र कुँवर शालिवाहन तोमर का विवाह Maharana pratap नें अपनी बहन से करवाया था।
Raja Ram shah जी पुत्र कुँवर शालिवाहन तोमर, कुँवर भवानी तोमर, कुँवर प्रताप तोमर सहित अनेक तोमर वीरो नें अपने जीवन को मेवाड़ के लिये समर्पित कर दिया एवं अपना बलिदान दिया।
Jhala Man singh बड़ी सादड़ी (झाला) ठीकाने से आते थे। जब Haldighati yudh में Maharana pratap के प्राणों पे संकट आया और मेवाड़ के हित में Maharana pratap को Haldighati ka yudh छोडकर जाना पड़ता है तब Jhala Man singh ने ही Maharana pratap का स्थान लिया। Jhala Man singh Maharana pratap जैसे दिखते थे।
जिस कारण Maharana pratap युद्धभूमि छोडकर जाने में सफल हो पाये। Jhala Man singh नें अपने प्राणों की आहुति देकर Maharana pratap की रक्षा की।
रावत कृष्ण दास चुंडावत ने ही जगमाल को हाथ पकड़ कर सिंहासन से नीचे उतारा था। यह सलूंबर के रावत थे।
मेवाड़ की हरावल मैं रहकर रावत कृष्णदास चुंडावत जी ने मुगल सेना को बहुत दूर तक खदेड़ा। रावत कृष्णदास चुंडावत ने अपने पराक्रम से ऐसे ही कीर्ति प्राप्त की जैसे कि उनके पूर्वजों ने प्राप्त की थी।
रणभूमि मैं इन्हें कोई भी मुगल मार नहीं पाया। ऐसा कहा जाता है की इन्होंने Maharana pratap के साथ ही युद्धभूमि से प्रस्थान करा था।
राणा पुंजा जी भीलो के सरदार थे। कुछ इतिहासकार इन्हें हल्दीघाटी में वीरगति पाने वाले योद्धाओं में से समझते हैं। इन्होंने Haldighati ka yudh लड़ा परंतु यह haldighati के yudh में वीरगति को प्राप्त नहीं हुए।
इनकी मृत्यु तो Haldighati yudh के लगभग 34 वर्ष पश्चात हुई।
Hakim khan sur ने मेवाड़ की हरावल का नेतृत्व किया था। Hakim khan sur शेरशाह सूरी के वंशज थे।
Hakim khan sur ने युद्ध से पहले कहा था कि आज इस पठान के हाथ से लगाम और तलवार दोनों नहीं छूटेगी।Haldighati ka yudh समाप्त हुआ एवं Hakim khan sur नें अपने प्राणों का बलिदान मेवाड़ के लिये दिया, किन्तु जब युद्ध के बाद उनके हाथ से तलवार व लगाम छुड़ाने का प्रयास किया गया तो भी उनके हाथ से उनकी तलवार व लगाम नहीं छूटी।
Hakim khan sur को उनकी talwar के साथ दफनाया गया।
ठाकुर भीम सिंह डोडिया लावा सरदारगढ़ के ठाकुर थे। ठाकुर भीम सिंह जी ने अद्भुत पराक्रम एवं वीरता का परिचय हल्दीघाटी युद्ध में दिया।
ठाकुर भीम सिंह डोडिया ने कई मुगलों को मौत के घाट उतारा वे स्वयं मुगलों को मारते मारते अकबर के सेनापति Raja Man singh के हाथी के पास पहुंच गए उन्होंने भाले से Raja Man singh के हाथी पर प्रहार किया परंतु जवाबी कार्यवाही में वीरगति को प्राप्त हुए। इन्होंने अपने अद्भुत पराक्रम से अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षर से अंकित कराया।
ठाकुर भीम सिंह डोडिया के साथ-साथ उनके दोनों पुत्रों एवं उनके दोनों भाइयों ने भी मेवाड़ के रक्षा, स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
यह पाली से संबंध रखते थे। यह पाली के सोनगरा अखराज के पुत्र थे। यह Maharana pratap के मामा थे।
मान सिंह जी नें Maharana pratap को सिंहासन दिलवाने ने अहम भूमिका निभाई थी। इनके वीरगति को प्राप्त होने के बाद इनके छोटे भाई Maharana pratap जी की सेवा में उपस्थित हुए।
आशा है आप के लिए Haldighati ka yudh एवं इसमे भाग लेने वाले मेवाड़ के वीर योद्धाओं का वर्णन ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायी रहा होगा। इसके संबंध में आपका कोई प्रश्न हो तो comment में बताये।
Haldighati ka yudh भारत में लड़े गये सब से महान युद्धों में से एक है। आज हम आपको जिस yudh के बारे में बताने जा रहे उसको कई इतिहासकार Haldighati ka yudh भाग 2 भी कहते हैं इस युद्ध का नाम है दिवेर का युद्ध।दिवेर का युद्ध इसके संबधित सारे प्रश्नों के उत्तर आज हम आपको हमारे article में देने का प्रयास करेंगे।
Haldighati ka yudh, Maharana pratap एवं Akbar के बीच निर्णायक युद्ध नहीं था। Haldighati ka yudh तो मुगल सेना एवं Maharana pratap के बीच संघर्ष की शुरुआत थी। और इस संघर्ष को शक्ति प्रदान करने वाले युद्ध बना "दिवेर का युद्ध"।
Haldighati yudh के बाद मुगल सेना का उदयपुर , गोगुंदा , कुंभलगढ़ और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो चुका था। पर मुगल सेना Maharana pratap को ना तो पकड़ सकी और ना ही संपूर्ण मेवाड़ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर सकी।
Haldighati ka yudh 1576 मैं हुआ , 1577 से 1582 तक अकबर ने Maharana pratap को पकड़ने के लिए लगभग 1 लाख का सैन्य बल भेजा पर Maharana pratap को पकड़ने में असफल रहा।
अंग्रेजी इतिहासकारों के अनुसार Haldighati yudh का दूसरा भाग जिसे battle of dever ( दिवेर का युद्ध ) भी कहा जाता है। दिवेर का युद्ध मुगल सेना व मुगल बादशाह अकबर के लिए करारी हार सिद्ध हुआ।
Maharana pratap द्वारा दिवेर युद्ध की योजना अरावली के जंगलों में बनाई थी। उन्होंने भामाशाह के द्वारा दी गई संपत्ति एवं भीलो की सहायता से नई सेना का निर्माण किया एवं छापे मार युद्ध पद्धति से लगातार मुगलों पर हमले किए एवं रसद और हथियार की लूट से मुगल सेना की हालात खराब कर दी।
Haldighati yudh के लगभग 6 साल बाद 1582 दिवेर का युद्ध हुआ। विजयादशमी का दिवस था Maharana pratap ने अपनी sena को दो भागों में विभाजित कर दिया एक का नेतृत्व वे स्वयं कर रहे थे दूसरे भाग का नेतृत्व उनके जेष्ठ पुत्र राजकुमार Amar singh ji ( जो आगे चलकर मेवाड़ के Maharana बने ) कर रहे थे। अकबर की ओर से मुगल सेना का नेतृत्व अकबर का चाचा सुल्तान खा कर रहा था।
राजकुमार Amar singh जी के नेतृत्व में Rajput सेना ने दिवेर के शाही थाने पर हमला किया यह हमला इतना भयंकर था कि मुगल सेना में हड़कंप मच गई राजकुमार Amar singh जी ने अद्भुत शौर्य दिखाते हुए मुगल सेनापति पर भाले का ऐसा प्रहार किया की भाला senapati और उसके घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धसा।
अपने सेनापति की ऐसी दुर्दशा देखते हुए मुगल सेना में भगदड़ मच गई Rajput सेना ने मुगल सेना को अजमेर तक खदेड़ा।
युद्ध के पश्चात 36,000 मुगलों ने Maharana pratap एवं राजपूती सेना के आगे आत्मसमर्पण किया। इस विजय के पश्चात Maharana pratap ने कई महत्वपूर्ण दुर्ग एवं ठिकानों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया जिनमें प्रमुख हैं कुंभलगढ़ , गोगुंदा , जावर , मदारिया आदि हैं।
इसके पश्चात भी Maharana pratap ने मुगलों पर आक्रमण जारी रखें एवं चित्तौड़गढ़ को छोड़कर लगभग समूचे मेवाड़ के क्षेत्र पर जिन पर मुगलों ने अपना अधिकार स्थापित करा था उन्हें मुगलों से वापस छीन कर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
यहां तक की मेवाड़ से गुजरने वाले मुगल काफीलो को Maharana pratap को रकम देनी पड़ती थी।
आशा है आपको Haldighati ka yudh भाग 2 जिसे दिवेर का युद्ध कहा जाता है, इसके संबधित सारे प्रश्नों के उत्तर आपको मिल गये होंगे। इसके संबंध में आपका कोई प्रश्न हो नीचे comment में बताये।